जेहनूं राधा रानी आप बुलावे
धुन - मामला गड़बड़ है
जेहनूं राधा रानी आप बुलावे,
ओह दौड़ा दौड़ा वृंदावन जावे।
तां समझो…...
शाम दा प्यारा है, शाम दा प्यारा है॥
जेहनूं सूरज ते चंद आ के सीस निवाऊंदे ने,
मेरे शाम जी भुल्लियां नूं वी रास्ते पाऊंदे ने।
जेहनूं शाम दा प्यार सतावे,
ओहनूं इक पल चैन न आवे,
ओह दौड़ा दौड़ा वृंदावन जावे, तां समझो…..
शाम दा प्यारा है, शाम दा प्यारा है॥
मैं की की सिफतां करां तेरे दरबार दीआं,
एह रूहां मेरे शाम नूं पुकारदियां।
जेहनूं शाम दी याद रुलावे,
ओहनूं कुछ वी नज़र न आवे,
ओह दौड़ा दौड़ा वृंदावन जावे, तां समझो…..
शाम दा प्यारा है, शाम दा प्यारा है॥
जेहड़ा कंडियां नूं वी फूल समझ के सहि लैंदा,
ओह मनमोहन दा साथ सुहाणा पा लैंदा।
ओहनूं इक पल चैन न आवे,
ओहदी कट चौदासी जावे,
ओह दौड़ा दौड़ा वृंदावन जावे, तां समझो….
शाम दा प्यारा है, शाम दा प्यारा है॥
अपलोडर -- अनिल राम मूर्ति भोपाल
श्रेणी : कृष्ण भजन
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यह भजन एक सच्चे, निर्मल और समर्पित भक्त की अवस्था को बड़े ही भावपूर्ण शब्दों में दर्शाता है — वह सौभाग्य, जब राधा रानी स्वयं किसी को बुला लें, तो समझो वह भक्त वाकई "शाम दा प्यारा है।"
इस गीत में एक सुंदर कल्पना की गई है कि जिसे राधा रानी बुला लें, वह दौड़ता हुआ वृंदावन की ओर चल पड़ता है — मानो शरीर-मन-प्राण सब उसी ओर खिंच जाते हैं। यह भक्त वह होता है, जिसे न तो संसार की सुध रहती है, न समय का भान। उसे बस श्याम का नाम प्यारा लगता है, और उसकी हर सांस उसी स्मरण में व्यतीत होती है।
श्याम, जिनके आगे सूरज और चाँद भी सिर झुकाते हैं, जो भटकी हुई आत्माओं को भी रास्ता दिखाते हैं — उनका प्यार अगर किसी को लग जाए, तो वह पल भर भी चैन से नहीं रह सकता। ऐसा भक्त हर हाल में कृष्ण की ओर दौड़ता है, चाहे कांटे हों या कठिनाइयाँ, वो उन्हें फूल समझकर सह लेता है।
भजन के अंतरों में रूह की पुकार है, उस दरबार की महिमा है जहाँ कोई भी जात-पात, योग्यता या धन से नहीं — बल्कि केवल भक्ति से पहुंच सकता है। और जिसकी आत्मा स्वयं राधा पुकारे, उसका जीवन सचमुच धन्य है।
यह भजन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो मन से राधे-श्याम को प्रेम करते हैं और उनके दर्शन की तड़प लिए जीवन जीते हैं।