लाज रखो हे कृष्ण मुरारी
हे बनवारी, हे गिरधारी, लाज रखो हे कृष्ण मुरारी,
लाज रखो हे कृष्ण मुरारी,हे गिरधारी हे बनवारी,
कहता है खुद को तू बलशाली,,
खींच रहा अबला की साड़ी,
लाज रखों हे कृष्ण मुरारी,
हे गिरधारी हे बनवारी ॥
अब मैं समझी एक है अंधा,,
यहाँ तो सारी सभा है अंधी,
हे गिरधारी हे बनवारी,,
लाज रखों हे कृष्ण मुरारी ॥
स्वर : RAJIV SINGH
MANNU MRIDUL
श्रेणी : कृष्ण भजन
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यह भजन महाभारत के प्रसंग को जीवंत करता है, जब द्रौपदी ने अपनी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण को पुकारा था। "हे बनवारी, हे गिरधारी, लाज रखो हे कृष्ण मुरारी"—इन पंक्तियों में एक अबला की पुकार, उसका असहायपन और प्रभु के प्रति अटूट विश्वास झलकता है। सभा में जब किसी ने भी उसकी रक्षा नहीं की, तब वह कृष्ण को स्मरण कर कहती है कि जो स्वयं को बलशाली कहते हैं, वही आज उसकी लाज बचाने आएं। भजन की पंक्तियाँ उस समय की पीड़ा और साथ ही भगवान पर पूर्ण विश्वास का गहरा चित्रण करती हैं। यह भजन सुनते ही हर भक्त के हृदय में श्रीकृष्ण की करुणा, दया और संरक्षण की स्मृति ताज़ा हो उठती है। यह हमें यह संदेश भी देता है कि जब संसार साथ छोड़ देता है, तब केवल प्रभु ही हमारी ढाल बनकर खड़े होते हैं।