मेनू बंसरी सुनन दा चाह सखियां नूं पुछ सांवरे
धुन - सारी रात तेरा तक नी आं राह
मैनूं बंसरी सुनन दा चा, सखियां नूं पुछ सांवरे।
कि सखियां नूं पुछ सांवरे, कि सखियां नूं पुछ सांवरे।
मैं तां तेरे लई होई आं फनाह, कि सखियां नूं पुछ सांवरे।
मैनूं बंसरी सुनन दा चा...
सारी सारी रात श्यामा, नींद नहींओं आउंदी ए।
इक तां जुदाई, दूजा याद सताऊंदी ए।
रोग केहो जेहा दित्ता ए लगा, कि सखियां नूं पुछ सांवरे...
मैनूं बंसरी सुनन दा चा...
अद्धी अद्धी रातीं श्यामा यमुना ते जानदी आं।
कंढे उत्ते बैठ के मैं छंम छंम रोंदी आं।
एहे अखियां ने मेरियां गवाह, कि सखियां नूं पुछ सांवरे...
मैनूं बंसरी सुनन दा चा...
प्रेम दी जंजीर पा के तूं तां चला आवीं वे।
होवेगा दीदार किवें, एह तां दस जावीं वे।
हाल दिल वाला दित्ता ए सुना, कि सखियां नूं पुछ सांवरे...
मैनूं बंसरी सुनन दा चा...
जदों दा मैं श्याम तैनूं दिल च वसाया ए।
दूजा ना कोई इस दिल विच आया ए।
हुण खुश रख भावें तूं रूला, कि सखियां नूं पुछ सांवरे...
मैनूं बंसरी सुनन दा चा...
मैं तां तेरे कोलों कोई भेद ना छुपाया ए।
मैं तां तेरी हो गई पर तूं ना मेरा होया ए।
हुण आ के तूं गल नाल ला, कि सखियां नूं पुछ सांवरे...
मैनूं बंसरी सुनन दा चा...
अपलोडर -- अनिलरामूर्ति भोपाल
श्रेणी : कृष्ण भजन
मैनू बंसरी सुनन दा चा के सखियां नु पूछ श्याम वे #ekadashispecial #bhajanlyrics
यह भजन "मैनूं बंसरी सुनन दा चा, सखियां नूं पुछ सांवरे" एक अत्यंत भावुक और प्रेमपूर्ण रचना है, जिसमें राधा-श्याम के विरह और प्रेम की गहराई को सूक्ष्मता से उकेरा गया है। भजन की पंक्तियाँ एक सच्ची प्रेमिका के हृदय की पीड़ा, उसकी तड़प और उसकी एकमात्र लालसा — कृष्ण की बांसुरी की धुन — को बेहद मार्मिक ढंग से व्यक्त करती हैं।
राधा की तरह प्रेम में डूबी हुई नायिका अपने श्याम से कहती है कि उसे बस बांसुरी की मधुर आवाज सुननी है, और यह चाह इतनी प्रबल है कि वह अपनी सखियों तक से पूछने को तैयार है कि सांवरे कहां हैं। रातभर उसकी आंखों में नींद नहीं आती — एक ओर वियोग की वेदना, दूसरी ओर यादों का सागर उसे बेचैन किए रहता है।
हर पंक्ति में छुपा हुआ भाव एक स्त्री के सच्चे समर्पण और उसके एकतरफा प्रेम को दर्शाता है, जिसमें वह खुद को मिटा चुकी है लेकिन श्याम फिर भी उसका नहीं हुआ। भजन की भाषा पंजाबी में है, जो इसकी मिठास और भावनात्मक असर को और भी प्रभावी बना देती है।
यह भजन केवल गीत नहीं, बल्कि एक विरहिणी आत्मा की पुकार है, जो कृष्ण से मिलन के लिए व्याकुल है और जिसने अपना सर्वस्व उन्हें अर्पण कर दिया है। "मैनूं बंसरी सुनन दा चा..." — यही पंक्ति इस भक्ति की गहराई का प्रतीक बन जाती है, जो सीधे हृदय को छू जाती है।