म्हारा रुनिजारा राम थारो
म्हारा रुनिजारा राम, म्हारा रुनिजारा राम।
थारो बिगड़ी बणादे असो नाम।।
कोढ़िन को काया दीन्हीं अंधे को आँख रे।
गूँगे को बाचा दीन्हीं लँगड़े को पाँव रे।।
देवल में बैठ्या बैठ्या करे सारो काम।।
बाँझन को पुत्र दीन्हों निर्धन को दाम रे।
जो भी गाये खम्मा खम्मा बण जाए काम रे।
थारी दया को बाबा पार नहीं राम।।
कांय करी धूप बाबा कांय करी छाँव रे।
'अनुरोध' पर्वत जंगल कांय बस्या गाँव रे।
तू हो सबेरो करता तू ही करे साम।।
श्रेणी : राम भजन

यह भजन "म्हारा रुनिजारा राम थारो" एक अत्यंत भावपूर्ण और भक्तिपूर्ण रचना है, जो राम भक्तों के हृदय को छूने वाली है। इस भजन में रामजी की करुणा, उनकी कृपा, और चमत्कारी लीलाओं का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है। "रुनिजारा" शब्द मारवाड़ी या राजस्थानी संस्कृति से जुड़ा हुआ लगता है, जो राम के प्रति अपनत्व और भक्ति को दर्शाता है।
भजन की पंक्तियाँ बताती हैं कि भगवान राम कैसे कोढ़ी को स्वस्थ काया देते हैं, अंधे को आँखें, गूंगे को वाणी और लँगड़े को चलने की शक्ति प्रदान करते हैं। यह भजन उन चमत्कारों की गाथा है जो भगवान की कृपा से संभव हुए। यह भी कहा गया है कि वे देवालय में बैठकर भी सारे जगत के कार्यों को पूर्ण करने की क्षमता रखते हैं।
रामजी की महिमा का वर्णन करते हुए यह भजन बताता है कि वे बाँझ स्त्रियों को पुत्र प्रदान करते हैं और निर्धनों को धन देते हैं। यह स्पष्ट संदेश देता है कि जो भी श्रद्धा से राम का नाम लेता है – “खम्मा खम्मा” – उसके सारे कार्य बन जाते हैं।
भजन के अंतिम भाग में, रचयिता अनुरोध करते हैं कि "मैं क्या धूप करूँ, क्या छाँव करूँ, जब तू ही सबेरा और तू ही शाम है। तू पर्वत, जंगल, गाँव – हर जगह वास करता है।" इससे पता चलता है कि भगवान हर जगह, हर रूप में उपस्थित हैं और उन्हीं के सहारे जीवन चलता है।