लगा लो मात सीने से
लगा लो मात सीने से बरस 14 को जाते हैं,
तुम्हारी लाडली सीता साथ लक्ष्मण भी जाते हैं,
लगा लो मात सीने से बरस 14 को जाते हैं......
रोती हैं मात कौशल्या नीर आंखों से बहता है,
राजा दशरथ भी रोते हैं आज मेरे प्राण जाते हैं,
लगा लो मात सीने से बरस 14 को जाते हैं......
धन्य है केकई मैया को उन्होंने हमें वन को भेजा है,
ना हाथी है ना घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है,
लगा लो मात सीने से बरस 14 को जाते हैं......
यह भोजन क्यों बनाए हैं मात केकई को जा देना,
लिखा नहीं किस्मत में भोजन राम मां को समझाते हैं,
लगा लो मात सीने से बरस 14 को जाते हैं......
रो रही अयोध्या की प्रजा नीर आंखों से बहता है,
चले हैं वन खड़ को श्री राम प्रजा सब खड़ी घबराती है,
लगा लो मात सीने से बरस 14 को जाते हैं......
श्रेणी : राम भजन
राम, लक्ष्मण और सीता के 14 वर्षों के वनवास की बात आते ही कौशल्या और दशरथ के नयन अश्रुपूरित हो उठते हैं। राम की विदाई पर अयोध्या की प्रजा भी विह्वल है। मात कौशल्या के हृदय में वेदना है, वहीं केकई के निर्णय ने राम को वन जाने के लिए विवश किया। बिना घोड़े-हाथी के, पैदल ही राम वन को निकल पड़े। भोजन की चिंता भी राम ने छोड़ दी, क्योंकि वनवास की नियति ने उन्हें कठिनाईयों को स्वीकार करना सिखाया।
इस विदाई में एक ओर ममता की मर्मांतक पीड़ा है तो दूसरी ओर राम का कर्तव्यबोध। अयोध्या का हर निवासी रो रहा है, लेकिन राम ने धर्म की रक्षा हेतु यह वनवास सहर्ष स्वीकार किया। माताओं के सीने से लगकर, 14 वर्षों के वन की ओर बढ़ते श्रीराम का यह त्याग और धैर्य हमारे लिए प्रेरणा है।