मेरे राम गए वनवास
चंदा छुप जा रे बादल में मेरे राम गए वनवास,
मेरे राम गए वनवास, मेरे लखन गए वनवास,
चंदा छुप जा रे बादल में मेरे राम गए वनवास.....
आगे आगे राम चलत है,
पीछे पीछे लखन चलत है,
बीच में चलत जानकी मात मेरे राम गए वनवास,
चंदा छुप जा रे बादल में मेरे राम गए वनवास.....
जंगल में वो भटकते फिरते,
कंदमूल से पेट को भरते,
रोवे भरत अवध में आज मेरे राम गए वनवास,
चंदा छुप जा रे बादल में मेरे राम गए वनवास.....
गंगा जी के तट पर जाते,
केवट सेवर नाव मांगते,
हमको जाना परली पार मेरे राम गए वनवास,
चंदा छुप जा रे बादल में मेरे राम गए वनवास.....
पंचवटी पर कुटी बनाई,
रावण ने वहां सिया चुराई,
बन बन ढूंढ रहे भगवान मेरे राम गए वनवास,
चंदा छुप जा रे बादल में मेरे राम गए वनवास.....
श्रेणी : राम भजन
यह भजन "चंदा छुप जा रे बादल में" भगवान राम के वनवास की पीड़ा को दर्शाता है। इसमें राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास के संघर्ष और भरत की भावनाओं का सुंदर वर्णन है। राम-लक्ष्मण के साथ जानकी माता का जंगल में भटकना, कंद-मूल से पेट भरना, केवट से नाव मांगना और पंचवटी में रावण द्वारा सीता हरण का प्रसंग इस गीत में हृदयस्पर्शी तरीके से प्रस्तुत किया गया है। राम के वनवास के दौरान की कठिनाइयाँ और भगवान की खोज में भटकते हुए उनका संघर्ष, इस गीत की मुख्य भावना है। गीत की पंक्तियाँ "चंदा छुप जा रे बादल में" भगवान राम के वनवास के दर्द को और गहराई देती हैं। यह भजन भक्ति और श्रद्धा से भरा हुआ है, जो रामायण की घटनाओं को सरल शब्दों में जीवंत करता है।