फन फन नाच रहे बनवारी
फन फन नाच रहे बनवारी ।
पद प्रहार चट चट पट पट ध्वनि,
वारि रक्त अरु नारी ।।
नमित फनन धब धब ध्वनि उपजत,
वेणु नाद प्यारी ।
नाग त्रिया बहु विनय करत हैं,
नैन झरत वारी ।। फन फन....
फुं फुं फुं फुफकार करत अहि,
सलिल वीचि भारी ।
करि करि क्रोध झुकत माधव पर,
रुदति सकल ब्रजनारी ।। फन फन....
क्रोध सहित फन उठत जबहिं जो,
खट खट ध्वनि भारी ।
देवादास शिथिल कालिय अहि,
मानी निज हारी ।। फन फन....
भजन रचना : प.पू.गुरुदेव श्री स्वामी देवादास जी महाराज ।
स्वर : सियाराम जी ।
श्रेणी : कृष्ण भजन
कालिय पर कृपा का #भजन फन फन नाच रहे बनवारी | भजन रचना : प.पू.गुरुदेव श्री स्वामी देवादास जी महाराज ।
"फन फन नाच रहे बनवारी" एक अत्यंत भावपूर्ण और रहस्यपूर्ण कृष्ण भजन है, जिसकी रचना परम पूज्य गुरुदेव श्री स्वामी देवादास जी महाराज द्वारा की गई है, और इसे स्वरबद्ध किया है सियाराम जी ने। यह भजन भगवान श्रीकृष्ण के कालिय नाग के दमन की दिव्य लीला को अत्यंत प्रभावशाली शब्दों में प्रस्तुत करता है।
भजन में वर्णन है कि जब कालिय नाग ने यमुना नदी को विषैला बना दिया था, तब सम्पूर्ण ब्रजवासियों में भय का माहौल था। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अद्भुत वीरता के साथ कालिय नाग को पराजित किया। "फन फन नाच रहे बनवारी" यह पंक्ति दर्शाती है कि किस प्रकार श्रीकृष्ण ने उसके फनों पर नृत्य करके, अपने चरणों की ध्वनि से भयभीत कर उसे शरण में आने को विवश कर दिया।
भजन की हर पंक्ति में ध्वनि, गति और भावना का अनोखा संगम है – पद प्रहार चट चट पट पट ध्वनि से लेकर वेणु नाद प्यारी तक – यह सब दर्शाता है कि कृष्ण लीला केवल एक चमत्कार नहीं, बल्कि सच्ची करुणा और दिव्यता का प्रतीक है। इस भजन में नाग की क्रोधभरी फुफकार, ब्रजनारियों का विलाप, और अंत में कालिय का हार मानकर चरणों में लोट जाना – यह सब बेहद जीवंत चित्रण के रूप में सामने आता है।
यह भजन न केवल श्रीकृष्ण की शक्ति और करुणा का वर्णन करता है, बल्कि भक्ति भाव से ओतप्रोत है, जो हर श्रोता के हृदय को भावविभोर कर देता है। इसे सुनते ही मन कालिय मर्दन की उस दिव्य लीला में रम जाता है, जहाँ विष पर अमृत की विजय होती है, और अधर्म पर धर्म की स्थापना होती है।