भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर
तर्ज - भटके क्यों दर बदर, कर भरोसा श्याम पर
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर,
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर,
जब कभी मैंने पुकारा, हर मुसीबत से उबारा,
बन गया मेरा सहारा, सांवरा मेरा सांवरा,
सांवरा मेरा सांवरा,
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर,
जब मैं इसके दर गया, इसका ही बस हो गया,
छोड़ के सारा जमाना, बन गया इसका दीवाना,
चढ़ गई दीवानगी, हो गया मैं बावरा,
दिल में मेरे बस गया अब, सांवरा मेरा सांवरा,
सांवरा मेरा सांवरा,
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर,
जब से देखे दो नयन, हो गया मैं तो मगन,
छोड़ के सब काम सारे, करता हूँ बस श्याम भजन,
भजनों से उसको रिझाऊ, भजनों से उसको मैं पाऊ,
एक दिन मिल जाएगा, सांवरा मेरा सांवरा,
सांवरा मेरा सांवरा,
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर,
ना कोई मेरा यहा,ना किसी से आस हैं,
एक हैं बस श्याम मेरा, उसपे ही विश्वास है,
दिल लगाया श्याम से, राधे राधे नाम से,
दिल में मेरे बस गया अब, सांवरा मेरा सांवरा,
सांवरा मेरा सांवरा
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर,
Lyrics - Jay Prakash Verma, Indore
श्रेणी : खाटू श्याम भजन
भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर ।। #shyam #krishna #bankebihari #radhe #radheradhe #radhekrishna
"भटकू ना दर बदर, हैं भरोसा श्याम पर" — यह भजन एक ऐसे सच्चे भक्त की हृदय-गाथा है, जिसने संसार के हर दरवाज़े पर ठोकर खाई, लेकिन जब खाटू के श्याम बाबा के शरण में आया, तब उसे स्थिरता, प्रेम और पूर्ण विश्वास प्राप्त हुआ। जय प्रकाश वर्मा (इंदौर) द्वारा रचित यह भावपूर्ण रचना तर्ज – “भटके क्यों दर बदर, कर भरोसा श्याम पर” पर आधारित है, जो सीधे मन के तारों को झंकृत करती है।
भजन की शुरुआत में ही भक्त स्पष्ट करता है कि अब वह दर-बदर नहीं भटकेगा, क्योंकि उसने श्याम बाबा पर अडिग विश्वास कर लिया है। यह पंक्ति सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण और आस्था का एलान है।
पहले अंतरे में जब भक्त कहता है — जब कभी मैंने पुकारा, हर मुसीबत से उबारा — तो यह अनुभव बताता है कि श्याम बाबा संकट में संकटमोचन बनकर आते हैं। भक्त के लिए बाबा अब केवल आराध्य नहीं, बल्कि उसका सहारा बन चुके हैं — उसका "सांवरा"।
दूसरे अंतरे में जीवन परिवर्तन की झलक है — भक्त बताता है कि जब वो बाबा के दर पर गया, तो उसी क्षण उसका जीवन बदल गया। उसने दुनियावी मोह छोड़ दिए और अब वो सिर्फ श्याम का दीवाना बन गया है। “चढ़ गई दीवानगी, हो गया मैं बावरा” जैसी पंक्तियाँ भक्ति की गहराई दर्शाती हैं।
तीसरे अंतरे में भक्त कहता है कि अब उसकी आँखों में सिर्फ श्याम ही बसे हैं। सारे काम छोड़कर अब वह केवल भजन में लीन है, क्योंकि उसे विश्वास है कि एक दिन वह अपने सांवरे को पा ही लेगा। यह अंतरा निश्छल प्रेम और साधना का प्रतीक है।
चौथे और अंतिम अंतरे में वह कहता है कि संसार में उसका कोई नहीं — न उसे किसी से अपेक्षा है, न भरोसा। उसका मन अब केवल श्याम से जुड़ गया है, “दिल लगाया श्याम से, राधे राधे नाम से” — यह भाव हर भक्ति के केंद्र में राधे नाम की महिमा को स्थापित करता है।
यह भजन केवल भावनाओं का गीत नहीं, यह भक्त के जीवन का सत्य है। इसमें श्याम के प्रति विश्वास, समर्पण, प्रेम और निर्भरता इतनी गहराई से भरी हुई है कि हर श्रोता स्वयं को इसमें पाता है। यह रचना सच्ची भक्ति की प्रेरणा है — एक ऐसा तराना, जो हर भटके मन को अपने सांवरे से जोड़ देता है।