कावड़ लेने में इस बार चला रे
( तर्ज - पालकी में होके सवार चली रे )
कावड़ लेने में इस बार चला रे,
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे,
वो बैठा है पहाड़ों में वो बैठा है गंगा किनारे रे,
भोले की कावड़ जो भी उठाए,
वो जिंदगी में कष्ट ना पाए,
करके पूरा विश्वास चला रे,
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
पहुंचेंगे जब हम गंगा किनारे,
मिलेंगे हमको भोले हमारे,
भर के ये कावड़ में आज चला रे,
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
गंगा जल से उनको नहलाउ,
चंदन लगा के आरती,
मन में मेरे नया चाव लगा रे,
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
लकी ओ प्यारे कावड़ उठा ले,
दिल तू अपना शिव से लगाले,
गा - गा कर मैं तो तान चला रे,
मैं भी कावड़ियों के साथ चला रे....
lyrics - lucky Shukla
श्रेणी : शिव भजन

यह सुंदर शिव भजन “कावड़ लेने में इस बार चला रे” भक्ति और उत्साह से परिपूर्ण रचना है, जिसे Lucky Shukla जी ने भावपूर्ण शैली में लिखा है। यह भजन प्रसिद्ध तर्ज “पालकी में होके सवार चली रे” पर आधारित है, जिससे यह श्रोता के मन को सहज ही छू लेता है। इसमें एक कांवड़िए की श्रद्धा, उमंग और शिव भक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है।
भजन की शुरुआत में भक्त कहता है कि इस बार वह भी कावड़ लेने चला है, और कांवड़ियों के साथ हर हर महादेव का जयघोष करते हुए गंगा किनारे भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो चला है। वह यह भी विश्वास जताता है कि जो सच्चे मन से कावड़ उठाता है, भोलेनाथ उसकी जिंदगी के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं।
हर पंक्ति में शिवभक्ति का उत्साह छलकता है – चाहे वो गंगा तट तक पहुंचना हो, भोलेनाथ को गंगाजल से स्नान कराना हो, या फिर चंदन लगाकर आरती करना। भजन में भक्त के मन में नया चाव, उमंग और भक्ति की लहर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
अंत में शायराना अंदाज़ में Lucky Shukla खुद को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे लकी प्यारे, तू भी कावड़ उठा ले, अपना दिल शिव से जोड़ ले और भक्ति के सुरों में गा गा कर भोले का नाम जप ले।
यह भजन सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि सावन के पावन महीने में शिव भक्तों की भावना, ऊर्जा और समर्पण का सजीव